Mandiron Ka Shahar Kise Kaha Jata Hai : 2 Great Cities

भारत एक ऐसा देश है जहा विभिन्न धर्मो के लोग वर्षो-सदियों से रहते हैं. आज का हमारा विषय है की Mandiron Ka Shahar Kise Kaha Jata Hai. हिन्दू धर्म इस देश का प्राचीनतम धर्म है. हिन्दू धर्म के साथ साथ बोध, सिख एवं जैन धर्म की उत्पत्ति भी भारत में ही हुई थी. इन्ही कारणों से भारत भर में मंदिरों की भरमार है. कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक दमन दीव से लेकर हर शहर गाँव मंदिरों से भरा हुआ है.

दोस्तों आज इस पोस्ट में हम लोग जानेंगे की किस शहर को मंदिरों का शहर कहा जाता है एवं क्यों कहा जाता है. साथ ही हम लोग इन शहरों के एतिहसिक महत्व की बात भी करेंगे.

Table Of Contents

Mandiron Ka Shahar Kise Kaha Jata Hai

ये प्रश्न आप बहुत बार सुनेंगे, परन्तु भारत के हर शहर एवं गाँव में मंदिर होता ही है. इस प्रश्न की विडंबना यही है की आपको Mandiron Ka Shahar Kise Kaha Jata Hai ? इसके बहुत सारे उत्तर मिलंगे. अतः आज हम आज इस पोस्ट में इस बात पर तथ्यों के साथ इस बात पर प्रकाश डालते हैं की भारत के किस शहर को मंदिरों का शहर कहा जाता है? आपसे अनुरोध है की आखिर तक इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें एवं खुद ही यह देखें की भारत का कौन सा शहर हो सकता है जिसे आप मंदिरों का शहर कहेंगे.

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अपनी इस पोस्ट में हम अपने प्रश्न के सही उत्तर को तर्क के साथ जानने की कोशिश करते हैं. अगर आप यह पोस्ट ध्यान पूर्वक पढेंगे तो आपको आपके सभी प्रश्नों के उत्तर मिल जायंगे.

Mandiron Ka Shahar Kise Kaha Jata Hai जब भी आप इस प्रश्न का उत्तर जानना चाहंगे तो आपको मुख्यतः दो उत्तर मिलंगे-

  1. भुवनेश्वर
  2. वाराणसी या बनारस

दोनों ही शहर अपने पूर्व काल के भव्य मंदिरों एवम शानदार दिर्ग्कालीन इतिहास के कारण जाने जाते हैं. अनेको अनेको भव्य कलाकर्तियाँ आपको आज भी मंत्रमुग्ध कर देती हैं. प्रति वर्ष देश विदेश से लाखो पर्यटक इन दोनों शहरों में visit करते हैं एवम् इन शहरों की इतिहासिक धरोहेरों को निहारते हैं. सभी अपने अपने तरीके से इस प्रश्न Mandiron Ka Shahar का उत्तर की देते हैं.

दोनों शहर के बारे में थोड़ा जानने की कोशिश करते हैं तथा जानते हैं की आखिर हमारे प्रश्न Mandiron Ka Shahar Kise Kaha Jata Hai का सही उत्तर क्या है?

भुवनेश्वर : Mandiron Ka Shahar Kise Kaha Jata Hai ?

आइये सबसे पहले भुवनेश्वर के बारे में जानते हैं. एवं जानते हैं की भारत में भुवनेश्वर क्यों प्रसिद्ध है?

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भुवनेश्वर शहर का विवरण

भुवनेश्वर शहर भारत के ओड़िशा राज्य की राजधानी है एवम् इस राज्य यानि की ओड़िशा का सबसे बड़ा शहर है. राजधानी होने के साथ साथ भुवनेश्वर पूर्व भारत एक मत्वपूर्ण सांस्क्रतिक केंद्र भी है. यह शहर दया नदी, महानदी एवम् कुआखाई नदी के बीच स्थित है. भुवनेश्वर को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है, इसका प्रमुख कारण इस शहर का इतिहासिक महत्त्व है. इस शहर ने अनगिनत राजाओ के शासन देखे हैं, बहुत सारे युद्ध का सहा है तथा अनेको धर्मो एवम् मान्यताओं के उत्थान-पतन का साक्षी बना है.

देखा जाये तो मंदिरों के साथ साथ विभिन्न सांस्‍कृतिकों का एक केंद्र रहा था. सभी धर्मो के लोगो ने आपने आपने धर्म के उत्थान के लिए यहाँ बहुत सारे स्मारक बनायें थे, जिनकी झलक आज भी दिखाई दे जाती है.

इन्ही मान्यताओ के अनुयायीयों ने ही बहुत सारे मंदिर इत्यादि का निर्माण करवाया एवम Mandiron Ka Shahar Kise Kaha Jata Hai के उत्तर में भुवनेश्वर का स्थान पक्का करवाया.

भुवनेश्वर शब्द का अर्थ

आइये अब अपनी पोस्ट को आगे बढ़ाते हुए हम भुवनेश्वर शब्द के अर्थ को समझने का प्रयास करते हैं.

“भुवनेश्वर” शब्द संस्कृत भाषा से उत्पन्न हुआ है एवं  यह शब्द दो भागों से मिलकर बना है –

भुवनेश्वर = भुवन + इश्वर .

भुवन भगवान शिव को बोला जाता है, तथा ईश्वर खुद ही भगवान का पर्यायवाची शब्द है. जिस शहर का अर्थ ही ईश्वर हो तो आप अंदाज़ा लगा सकते हैं की यहाँ किस चीज़ की बहुताय होगी. भुवनेश्वर शहर के हर कौने, हर गलियों में मंदिर दिखाई दे जाते हैं, हर मंदिर अपने में एक कहानी समेटे हुए है.

वैसे “भूवन” शब्द का एक अर्थ “संसार” या “जगत” भी होता है . इस प्रकार से भुवनेश्वर = संसार का भगवान, यानि की भगवान शिव.

भुवनेश्वर शहर का एतिहासिक महत्व

इतिहास के पन्नों में भुवनेश्वर शहर का एतिहासिक महत्व बहुत अधिक है. कलिंगा का प्रसिद्ध युद्ध 300 ईसा पूर्व यही भुवनेश्वर में हुआ था. इस युद्ध में हजारों-लाखों ने अपने प्राणों को गवाया. युद्ध के बाद इसकी विभिस्ता को देखकर सम्राट अशोक का ह्रदय परिवर्तन हुआ था. उन्हें लडाई एवं युद्ध से नफ़रत हो गयी. इस युद्ध के बाद सम्राट अशोक बोद्ध धर्म के प्रमुख अनुयायी बन गए. इस दौरान यहाँ बोद्ध धर्म फला-फुला.

भुवनेश्वर शहर में बोद्ध धर्म के मिले अवशेषों से पता चलता है की सातवी शताब्दी तक यहाँ बोद्ध धर्म अपने चरम पर था. इनके पश्चात यहाँ कुछ प्रसिद्ध जैन शाशक भी हुए एवम् जैन धर्म का उत्थान हुआ. इसी दौरान जैन धर्म के बहुत सारे धार्मिक स्थल भी बनाये गए.

कुछ वर्ष पहेले भुवनेश्वर से कुछ दूरी पर खुदाई की गयी तो यहाँ कुल मिलाकर 3 बोद्ध धर्म के अवशेष मिलें हैं. पुराने ग्रंथो से मिलान करने पर archaeologists ने इनका नामकरण रत्‍नागिरि, उदयगिरि तथा ललितगिरि के रूप में किया है. Mandiron Ka Shahar Kise Kaha Jata Hai, के उत्तर के साथ साथ ऐसा भी प्रतीत होता है की भुवनेश्वर को बोद्ध धर्म एवं जैन धर्म के उत्थान का शहर भी कहा जा सकता है.

कलिंगा के युद्ध के बाद सम्राट अशोक के ह्रदय परिवर्तन एवम् उनके अपने बचे हुए जीवन को मानवता की भलाई में अर्पित कर दिया. भुवनेश्वर में सम्राट अशोक के अपने जीवन को बोद्ध धर्म के उत्थान में निच्छावर कर देने के कारण समकालीन लेखकों ने भुवनेश्वर को पूर्व का काशी भी कहा है.

भुवनेश्वर में 7वी शताब्दी से हिन्दू धर्म धार्मिक स्थलों के निर्माण प्रारम्भ हुआ, जो की लगभग 1000 वर्षो तक चला. इस दौरान लगभग 7000 मंदिरों का निर्माण किया गया. शायद से किसी भी भारतीय शहर में इतने अधिक मंदिर होना असंभव है, इसी कारण से जब भी यह प्रश्न  पूछा जायेगा की मंदिरों का शहर किसे कहा जाता है (Mandiron Ka Shahar Kise Kaha Jata Hai ), तो उसके उत्तर में सबसे पहेले भुवनेश्वर का ही नाम आता है.

हालाकि आज केवल 600 मंदिर ही शेष हैं. मंदिरों के कम होने के वज़ह मुख्यतः इतिहासिक कारण जैसे की युद्ध, प्राकृतिक आपदा एवं संरक्षण की समस्या इत्यादि थी. इन धार्मिक स्थलों की निर्माण शैली कलिंग शैली है. और ये बात सही भी है क्योंकि भुवनेश्वर कलिंगा राज्य की राजधानी है एवम् चुकी इस शहर का नाम ही शिव भगवान के नाम पर है अतः यहाँ मुख्यतः भगवान शिव के ही मंदिर हैं.

Mandiron Ka Shahar Kise Kaha Jata Hai

भुवनेश्वर के प्रमुख मंदिर –

अपनी इस पोस्ट में हम अब आगे बढ़ते हुए जानते हैं की क्या भुवनेश्वर ही हमारे प्रश्न, यानि की Mandiron Ka Shahar kaun sa Hai, का सही उत्तर है?

  1. राजा रानी मंदिर: यह मंदिर शिव भगवान एवम् पार्वती माता की कलात्मक मूर्तियों के लिये प्रसिद्ध है. इस मंदिर का निर्माण 11वी शताब्दी में करवाया गया. कई बार पर्यटक इस मंदिर के नाम से ऐसा सोच सकते हैं की यह मंदिर किसी राजा रानी का मंदिर है, लेकिन असल में यह पूरा मंदिर राजा रानी पत्थर से बना हुआ, इसी कारण से इस मंदिर को राजा रानी मंदिर बोला जाता है. इस मंदिर के भीतर की कलाकर्तियाँ आपको अनायास ही इस मंदिर की तुलना खजुराहो के मंदिरों से करने पर मजबूर कर देगीं. शायद से अकेले इस मंदिर की भव्यता ही आपको सोचने पर मजबूर कर देगी की मंदिरों के शहर, इसके उत्तर में भुवनेश्वर का नाम सबसे पहले क्यों लिया जाता है.
  2. लिंगराज मंदिर: शिव पार्वती जी का मंदिर. भुवनेश्वर ही नहीं भारत के सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक स्थलों में से एक. ये मंदिर अनेकों मंदिरों का एक समहू है. इसका निर्माण 11 वी शताब्दी में शरू करवाया गया हालाकि इस मंदिर मे कार्बन डेटिंग से कुछ पार्ट की उम्र छटवी शताब्दी की भी पाई गयी है. लिंगराज = लिंग + राज, लिंग राज्य का राजा, अर्थात भगवान शिव, जो की लिंगा साम्राज्य के प्रतीक हैं.
  3. अनन्त वासुदेव मंदिर: यह  मंदिर 13वी शताब्दी में बनाया हुआ है ,एवं भगवान विष्णु को समर्पित हैं. इस मंदिर की सबसे ख़ास बात है इसकी रसोई ,जो की भुवनेश्वर के सभी मंदिरों में सबसे बड़ी है एवम् रोज हजारों श्रद्धालु के लिये, मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाया जाता है. यह मंदिर भुवनेश्वर के कुछेक बड़े मंदिरों में से है जो की भगवान शिव को समर्पित नहीं है.
  4. ब्रहामेश्वर मंदिर: इस मंदिर का निर्माण 11 वी शताब्दी में किया गया एवम् ये मंदिर भगवान शिव के अवतार, ब्रहामेश्वर को समर्पित है. कुछ इतिहासकार ब्राह्मेश्‍वर मंदिर को राजा रानी मंदिर का ही extension या विस्तार बोलते हैं. इसका मुख्य कारण इन दोनों मंदिरों के बीच की दूरी है जो की मीटर में ही हैं. हलाकि हमारा मत है की ब्राह्मेश्‍वर मंदिर अपने आप में एक अलग मंदिर है. यह मंदिर भी भगवान शिव को समर्पित है. इस मंदिर श्रंखला में चारों कोंनो पर एक एक मंदिर है. इनमे भी कुछ कलाकर्तियाँ आपको खजुराहो के मंदिरों की याद दिला देंगें.
  5. मुक्तेश्वर मंदिर: यह मंदिर भी राजा रानी मंदिर से मात्र 100 मीटर की दूरी पर स्थित है. यह मंदिर भी भुवनेश्वर के अधिकांश मंदिरों की तरह विभिन्न मंदिरों का एक समहू है. एस मंदिर के दो मुख्य मंदिर परमश्वर मंदिर एवम् मुक्तेश्वर मंदिर हैं. इतिहासकारों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 6वी  शताब्दी से प्रारम्भ हुआ था. मुक्तेश्वर मंदिर के का निर्माण 10 वी शताब्दी में किया गया जान पड़ता है. मुक्तेश्वर मंदिर में दीवारों पर की गयी नक्कासी मन्त्र मुग्ध कर देती है. मुक्तेश्वर नृत्य समारोह विश्व प्रशिद्ध है एवम् प्रति वर्ष हजारों कलाकार यहाँ अपनी अपनी कला के प्रदर्शन के लिये दूर दूर से आते हैं. मुक्तेश्वर नृत्य समारोह पर्यटकों के लिए भुवनेश्वर का एक प्रमुख आकर्षण है. यकीन मानिये इस मंदिर के भ्रमण के बाद आप खुद ही जब यह प्रश्न सुनेंगे की Mandiron Ka Shahar Kise Kaha Jata Hai, तो आपके मुख से भुवनेश्वर का नाम ही निकलेगा.
  6. परसुमेश्वर मंदिर: परसुमेश्वर मंदिर भुवनेश्वर का सबसे पुराना मंदिर है इसका निर्माण 6 वी शताब्दी में प्रारम्भ किया गया था. यह मंदिर भी भगवान शिव को समर्पित है. परसुमेश्वर मंदिर की विशेषता उसका भव्य विशालकाय शिखर है. इसके शिखर की ऊंचाई लगभग 77 फुट है. इस मंदिर के पास एक छोटे झील भी है, जिसे की उदयागिरी झील कहा जाता है. यह झील मंदिर के वातावरण को और भी सुंदर बनाती है. परसुमेश्वर मंदिर के अंदर एक पवित्र शिवलिंग स्थापित है, जिसे भगवान शिव के अभिषेक के लिए उपयोग किया जाता है.
  7. चौसठ योगिनी मंदिर: भुवनेश्वर के हीरापुर छेत्र में स्थित चौसठ योगिनी मंदिर देश में इस प्रकार के 4 मदिरों में से एक है. इनमे से 2 मंदिर मध्यप्रदेश राज्य में तथा 2 छत्तीसगढ़ में हैं . यह मंदिर, चंडी देवी, जिनको महामाया बोला जाता है एवम् उनकी 64 योगिनियो की पूजा के लिये प्रसिद्ध है. इस मंदिर की खास बात है की इस मंदिर में कोई छत नहीं है , इस बारे में स्थानीय लोग बोलते हैं की छत इसलिए नहीं राखी गयी है की योगिनी उडकर खुले मे विचरण कर सके. चौसठ योगिनी मंदिर अत्यंत ही अद्भुत एवम् रहश्यमयी रचना है. आपको बता दें की योगिनी देवियाँ होती हैं जिन्हें तांत्रिक विद्या से पूजा जाता है एवम् प्रसन्न किया जाता है. इन मंदिरों में रात को किसी के भी रुकने की इज़ाज़त नहीं है.  Kise Kaha Jata Hai, जब आप इस अद्भुत मंदिर का दर्शन करंगे तो आप स्वम् ही इस प्रश्न का उत्तर जान जायंगे की Mandiron Ka Shahar किसे कहते हैं.
  8. बेताल मंदिर: यह मंदिर, लिंगराज मंदिर के पास स्थित है  एवम् यहाँ चामुण्डा देवी की आराधना की जाती है.इसका निर्माण खुदाई शैली में किया गया है, जिससे इसका स्वरूप खास और रोमांचकारी है. मंदिर के शिखर की खूबसूरती  की वजह से इसे ओडिशा का “खजुराहो” भी कहा जाता है. बेताल मंदिर के शिखर पर अनेक छोटे शिखर मौजूद हैं, जो की इस मंदिर को और भी विशेष बनाते हैं.
  9. धौली: यहाँ पर सम्राट अशोक ने अपना पश्‍चात्ताप काल को बिताया था. यहाँ बोद्ध स्तूप एवम् बोद्ध शैली की कई और भी सांस्कृतिक विरासत हैं.
  10. उदयगिरि और खन्डगिरि गुफाये एवम् मंदिर: यह जगह भुवनेश्वर से लगभग 5-7 km दूर उदयगिरि और खन्डगिरि की पहाडियों में स्थित है. इनका निर्माण चेदी साम्राज्य के राजा खारवेल ने 8 वी शताब्दी में, जैन मुनियों के विश्राम हेतु करवाया था.

इसके अतरिक्त यहाँ अन्य भी छोटे बड़े मंदिर हैं.

ये शहर भारत के आदि काल का भव्य उदहारण हैं एवम् हमारे प्रश्न Mandiron Ka Shahar Kise Kaha Jata Hai का प्रमुख उत्तर बनने का दावा प्रस्तुत करता है.

अपनी पोस्ट को आगे बढ़ाते हुए हम वारणसी शहर के बारे में बात करते हैं. जानते हैं की वारणसी शहर किन स्थलों के लिए प्रसिद्ध है? एवं इस शहर के इतिहास पर भी एक नज़र डालते हैं.

अब हम अपने दुसरे धार्मिक स्थान, वारणसी, के बारे में चर्चा करते हैं एवम देखते हैं की असल में Mandiron Ka Shahar का असली उत्तर है.

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वाराणसी

आइये अब वारणसी शहर के बारे में विस्तार से जानते हैं.

वाराणसी: मंदिरों का शहर in UP 

वारणसी शहर उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख सांस्कृतिक केद्र है. प्राचीन समय मे इसे काशी कहा जाता था एवम् बनारस भी कहा जाता था. आज कल इस शहर का नाम प्रयागराज है.

वारणसी शहर अपने मंदिरों एवम् घाटो के लिये पुरे विश्व मे प्रसीद्ध है. वारणसी शहर विश्व के सबसे पुराने शहरो में से हैं. इसकी प्राचीनता का अंदाजा इसी से लग जाता है की 5000 वर्ष पूर्व लिखे गए रामायण महाकाव्य में भी काशी का विवरण किया गया है.  वारणसी शहर भारत की सांस्कृतिक विरासत को सेकड़ो वर्षो से सहेजे हुए खड़ा है. ये शहर अपने अंदर सेकड़ो मंदिर एवम् घाटो को संजोए हुए है.

Mandiron Ka Shahar Kise Kaha Jata Hai

भारतीय शास्त्रीय संगीत का जन्मस्थान वाराणसी ही है, एवम् तुलसीदास द्वारा लिखी गयी राम चरित मानस का जन्म भी वाराणसी में ही हुआ था. कबीरदास, मुंशी प्रेमचन्द, हरि प्रसाद चौरसिया “पंडित”, उस्ताद बिस्मिल्लाह खां एवम् और अनगिनत भारतीय साहित्यक धरोहरों का जन्मदाता है वाराणसी.

वाराणसी के कौने कौने में इतिहास का समावेश है. वाराणसी या बनारस की हर गलियां अपने आप में इतिहास लिए हुए है. शायद बहुत सारे लोगो को नहीं पता होगा पर इन्हें कारणों से बनारस की गलियों को UNESCO की वर्ल्ड हेरिटेज साईट में गिना जाता है.

यह शहर गंगा नदी के तट पर बसा हुआ है एवम् अनेको लोग यहाँ अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए सेकड़ो सालो से आ रहे हैं, इसी लिए वाराणसी को महाश्मशान के नाम से भी जाना जाता है. गंगा नदी वाराणसी का एक अभिन्न अंग है. दुसरे शब्दों में बात करें तो गंगा नदी वाराणसी शहर की आत्मा है.

वाराणसी शब्द का अर्थ

वाराणसी = वरुणा नदी + असि नदी.

ये दोनों नदीयां गंगा नदी मे वाराणसी में मिलती हैं. इन्ही दोनों नदीयों के नाम पर ही वाराणसी शब्द का जन्म हुआ है.

वाराणसी शहर मुख्यतः गंगा नदी के घाटों एवम् घाटो के किनारों पर बसे मंदिरों के लिए प्रसिद्द है. इसे लिये वाराणसी को घाटो का शहर भी कहते हैं. Mandiron Ka Shahar Kise Kaha Jata Hai इस प्रश्न का उत्तर वाराणसी कम ही जान पड़ रहा है.

वाराणसी शहर का एतिहासिक महत्व

वाराणसी शहर आदि कॉल से ही भारत का प्रमुख तीर्थ स्थलों है. इसका उल्लेख रामायण, महाभारत, ऋग्वेद इत्यादी धार्मिक ग्रंथो में भी है. पोराणिक कथाओं के अनुसार इस शहर को भगवान शिव ने 6000 वर्ष पूर्व बसाया था. इसलिए इसका पौराणिक महत्व और भी बढ़ जाता है. ग्रंथो में ऐसा लिखा हुआ की यहाँ से निपुणता को प्राप्त हुए लोग मुक्ति को  प्राप्त होते हैं. यहाँ के घाटो पर तीर्थ यात्री अपने पूर्वजों का अंतिम संस्कार करते हैं उनकी मुक्ति की प्रार्थना करते हैं.

वाराणसी के घाट एवम् वाराणसी की गलियाँ UNISCO world heritage site में गिने जाते हैं .

अतः उपरोक्त कथनों से स्पष्ट है की जो हमारा मुख्य प्रश्न था की मंदिरों का शहर किसे कहा जाता है, उसके मुख्यतः दो उत्तर मिलते हैं भुवनेश्वर एवम् वाराणसी. विस्तार से जानने पर हमने देखा की दोनों ही शहरो में मदिर बहुताय से हैं परन्तु वाराणसी प्राचीन काल से ही अपने घाटो के लिये प्रसीद्ध है, जबकि भुवनेश्वर, जहाँ पर एक समय में 7000 मंदिर थे, अपने मंदिरों के लिये ही प्रसिद्ध है.

मुगल काल के दौरान वाराणसी की दशा 

मुगल काल के दौरान वाराणसी ने बहुत ही कठिन समय बिताया है लेकिन इसके बावजूद भी वाराणसी ने अपनी  संस्कृति, धर्म एवं  विरासत को बरकार रखा एवं एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

भारत में मुगल साम्राज्य 1526 से लेकर 1857 तक रहा. मुगल साम्राज्य के सम्राट अकबर ने 1575 में वाराणसी का दौरा किया. इसकी सुंदरता और सांस्कृतिक महत्व से प्रभावित होकर अकबर ने एक विशाल मस्जिद के निर्माण का आदेश दिया, जिसे अब ज्ञानवापी मस्जिद के नाम से जाना जाता है. हिंदुओं की मान्यता है की मस्जिद को हिन्दू धर्म के प्रमुख देवता, भगवान शिव के प्राचीन मंदिर को तुडवाकर बनाया गया था, आज भी यह एक विवाद का एक स्रोत है.

वाराणसी ने सबसे कठिन समय सम्राट औरंगजेब के शासनकाल के दौरान देखा है, इस दौरान औरंगजेब ने वाराणसी शहर को मंदिरों के सार्वजनिक विनाश का आदेश दिया इसके परिणाम स्वरुप  कई हिंदू धार्मिक लोगो को कठिन समय बिताना पड़ा एवं उन्हें छिपकर शहर से भागने पर मजबूर होना पड़ा. Mandiron Ka Shahar Kise Kaha Jata Hai के बारे में  प्रश्न के उत्तर के लिए हमे यह जानना जरुरी है.

इन चुनौतियों के बावजूद वाराणसी धर्म, कला, संगीत और साहित्य के केंद्र के रूप में एक प्रमुख नाम रहा. कवि और कबीर और तुलसीदास जैसे लेखक मुगल काल के दौरान वाराणसी में रहते हुए अपने प्रमुख लेख लिखे.

18वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य के पतन के बाद कुछ समय के लिए मराठा साम्राज्य ने 1775 में वाराणसी पर राज्य  किया, इनके बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने वाराणसी को अपने नियंत्रण में लिया। ब्रिटिश शासन के दौरान कई प्राचीन मंदिरों और स्थलों को पुनर्स्थापित और संरक्षित किया गया था.

निष्कर्ष on Mandiron Ka Shahar Kise Kaha Jata Hai

इसलिए कथन पूर्वक हम कह सकते हैं की Mandiron Ka Shahar Kise Kaha Jata Hai का उत्तर है भुवनेश्वर. भुवनेश्वर को ही मंदिरों का शहर कहा जाता है.

भुवनेश्वर के बारे में ज्यादा यहाँ देख सकते हैं

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FAQs on Mandiron Ka Shahar Kise Kaha Jata Hai :

लोगो द्वारा पूछे गए मुख्य प्रश्न कुछ इस प्रकार हैं

मध्यप्रदेश में मंदिरों का शहर किसे कहा जाता है?

खजुराहो को मध्यप्रदेश में मंदिरों का शहर कहा जाता है. वैसे कहीं कहीं पर इस प्रश् यानि की मध्यप्रदेश में मंदिरों का शहर किसे कहा जाता है, के उत्तर में उज्जैन का नाम भी आता है, परन्तु हमारे विचार से खजुराहो को मध्यप्रदेश में मंदिरों का शहर कहा जाना उचित होगा.

हजारों मंदिरों का शहर किसे कहा जाता है?

यह प्रश्न भी हमारे सामने बार बार आता है जिसमे पूछा जाता है की हजारों मंदिरों का शहर कौन सा शहर है? कांचीपुरम, जो की तमिलनाडु में स्थित है, अपने अनेको अनेको मंदिरों के लिए हजारों मंदिरों का शहर कहा जाता है. हम यह भी बताना चाहेंगे की कांचीपुरम को भारत के सात सबसे पवित्र शहरों में से गिना जाता है.

भारत के की शहर को गलियों और मंदिरों का शहर किसे कहा जाता है?

हमने ऊपर भी इस बात का विवरण किया है की  वाराणसी की गलियाँ विश्व प्रसिद्द है, एवं वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स का दर्जा पा चुकी हैं.  साथ ही साथ यहाँ बहुत सारे मंदिर भी हैं, इन्ही कारणों से वाराणसी को गलियों और मंदिरों का शहर कहा जाता है.

मंदिरों का शहर MP में कौन सा है?

अगर हम मध्यप्रदेश की बात करेंगे एवं मन्दिरों के ऊपर चर्चा होगी तो उज्जैन एवं खजुराहो का नाम आना लाजमी है. उज्जैन महाकाल की नगरी कहलाता है जबकि तो खजुराहो के मंदिर अपनी कला के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध हैं. इसी कारण से खजुराहो  को मध्यप्रदेश में मंदिरों का शहर कहा जाता है.

क्या आप बता सकते हैं की मंदिरों का राज्य किसे कहा जाता है?

दक्षिण भारत में स्थित तमिलनाडु राज्य भारत के प्राचीनतम राज्यों में से एक है. तमिलनाडु में मंदिरों की श्रंखला पुरे राज्य में फैले हुए हैं, इसी कारण से तमिलनाडु को मंदिरों का राज्य कहा जाता है.

मंदिरों का शहर Jharkhand में किसे कहा जाता है?

Jharkhand राज्य की अगर बात करें तो  देवघर, जहाँ की बाबा बैद्यनाथ का मुख्य मंदिर है एवं ज्योतिर्लिंग स्थापित है, को Jharkhand राज्य के मंदिरों का शहर कहा जाता है.

मंदिरों का गांव किसे कहा जाता है?

Jharkhand राज्य में एक गाँव स्थित जिसका नाम है गांव मलुटी. ऐसा कहा जाता है की करीब 300 वर्ष पूर्व यहां 108 मंदिर हुआ करते थे एवं यहाँ 108 तालाब भी थे. एतिहासिक महत्व के कारण ही मलुटी को मंदिरों का गांव कहा जाता है.

जैसा की ऊपर बताया गया है, भुनेश्वर को उसके प्राचीन एवं अनेकों मंदिरों के लिए Mandiron Ka Shahar Kise Kaha Jata Hai .

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